Sunday, September 28, 2014

14 साल जेल में रहे आमिर की आपबीती



मेरे पूर्वजों ने इस ज़मीन को, एक धर्म-निरपेक्ष देश को चुना, गांधी को अपनाया, और जिस मिट्टी में वे पैदा हुए उसी में हम दम तोड़ेंगे। ये शब्द हैं मोहम्मद आमिर ख़ान के जिन्होंने 18 से 32 साल के बीच की अपनी उम्र, यानी अपनी भरी जवानी के साल जेल में बिताए और 14 साल बाद बेगुनाही साबित होने पर कोर्ट के आदेश पर रिहाई हासिल की। रोहतक की सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था ‘सप्तरंग’ द्वारा 28 सितम्बर को शहीद भगत सिंह के जन्मदिवस पर मानवाधिकारों को केन्द्र में रखते हुए आयोजित एक कार्यक्रम में मोहम्मद आमिर ख़ान ने अपनी आप-बीती 100 से अधिक उपस्थित लोगों के बीच सुनाई। उन्होंने बताया कि किस तरह उन्हें सादा कपड़ों में पुलिस ने 20 फ़रवरी 1998 को 18 साल की उम्र में दिल्ली, रोहतक और गाज़ियाबाद के इलाकों में बम धमाके करने के नाम पर गिरफ़्तार कर लिया था। असल में तो यह कानूनन गिरफ़्तारी नहीं बल्कि अपहरण था क्योंकि उन्हें तो सड़क पर चलते हुए एक जिप्सी में धकेल कर डाल लिया गया और सात दिन तक तीसरे दर्जे की यातनाएँ देने तथा भयभीत हालत में कोरे कागज़ों पर हस्ताक्षर करवाने के पश्चात अदालत में पेश किया गया था। उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने पाकिस्तान जा कर बम बनाने का प्रशिक्षण लिया और फिर यहाँ आ कर बम धमाके किये। जब कि असलियत यह है कि जिन बम धमाकों का उन पर इलज़ाम लगा वे सब उन के पाकिस्तान जाने से 2 महीने पहले हो चुके थे। पाकिस्तान वे अपनी बहन से मिलने गए थे।
निर्दोष होते हुए भी उन्हें ही नहीं, उन के परिवार को भी बहुत कुछ झेलना पड़ा। पिता का छोटा-मोटा व्यापार ठप्प हो गया, माता-पिता कर्ज़ में डूबते चले गए,  अब्बा गुज़र गये और माँ को लकवा मार गया। माँ अब बोल भी नहीं सकतीं, और आमिर के कान ‘बेटा’ शब्द सुनने को तरस गये हैं। पुलिस द्वारा उन्हें ऐसे खतरनाक आतंकवादी के रूप में पेश किया गया कि अड़ोसी-पड़ोसी, रिश्तेदार सब बेगाने हो गये थे, सब परछाई से दूर भागने लगे थे। लेकिन माँ-बाप का उन पर भरोसा था। इन्साफ़-पसन्द लोगों का सहारा मिला, कुछ वकीलों ने बिना फ़ीस का लिहाज़ किये मदद भी की। मानव अधिकार संगठन पीपल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीस से सम्बद्ध वरिष्ठ वकील एन. डी. पंचोली ने केस सम्भाला तथा रोहतक से श्री राजेश शर्मा ने न्याय-मित्र के रूप में पैरवी की। अपने जीवन के 14 बेशकीमती साल जेल की सलाखों के पीछे गुज़ार कर 2012 में रिहाई हुई। 19 में से 17 मुकदमों में वे कोर्ट द्वारा बेकसूर साबित हो चुके हैं और 2 मामले अभी उच्च न्यायालय में लम्बित हैं।
आमिर ने बताया कि 16 साल पहले मिली यातनाएँ अब भी उन्हें चैन से सोने नहीं देतीं और रात में वे कई बार चीख़ कर उठ बैठते हैं। लेकिन उन की आप-बीती सुनने वाले हैरान थे कि उन्होंने इतना कुछ झेल लेने के बाद भी किस प्रकार बिना किसी कड़वाहट के, बिना किसी पर आक्रोशित हुए, नर्म आवाज़ में अपनी बात रखी। आमिर ने बताया कि उन्होंने अपनी सोच को हमेशा सकरात्मक ही रखा क्योंकि वे बेकसूर थे और उन्हें अपने मुल्क के संविधान में विश्वास था। उन्होंने बल दे कर यह बात कही कि उन के पूर्वजों ने इस ज़मीन को चुना, गांधी को अपनाया, एक धर्म-निरपेक्ष देश में रहना तय किया और जिस मिट्टी में वे पैदा हुए उसी में दम भी तोड़ेंगे। वे मानते हैं कि पूरा पुलिस विभाग तो बुरा नहीं है लेकिन कई हैं जो अपने काम को ईमानदारी से अंजाम नहीं देते और अपनी ताकत का दुरुपयोग करते हैं। आमिर ने यह सवाल उठाया कि क्या आज का हमारा देश हमारे शहीदों के सपनों का देश बन पाया है जहाँ प्रत्येक नागरिक समानता के बीच सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सके?
जेल की अपनी यादें साझा करते हुए आमिर ने बताया कि किताबें और पेड़-पौधे जेल के उन के साथी रहे। ग्यारहवीं के बाद की अपनी पढ़ाई उन्होंने तिहाड़ जेल में रहते हुए इगनू के कोर्स के माध्यम से जारी रखी। गाज़ियाबाद जेल में रहते हुए उन्होंने गांधी जी पर आयोजित निबन्ध प्रतियोगिता में भाग लिया जिस में प्रदेश के अधिक नहीं तो 400 प्रतिभागी रहे होंगे और उन्हें इस में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। पिता की सलाह और हिदायत कि जेल में भी अच्छों में ही रहना और कोई अच्छा न मिले तो अकेले रहना का उन्होंने पालन किया और इस से उन्हें बहुत मदद मिली। रोहतक की जेल में गुज़रे अपने 6 महीनों को याद करते हुए उन्होंने यहाँ के लोगों की प्रशंसा की और बताया कि किस प्रकार साथी कैदी उन के साथ नर्मी से पेश आते थे।
जेल में कुरान, गीता और रामायण का अध्ययन करने वाले आमिर ने कहा कि उन के लिए तो मानवता ही सब से बड़ा धर्म है और गांधी उन के आदर्श हैं।
कार्यक्रम में आमिर की मदद करने वाले दिल्ली के वकील एवं पी.यू.सी.एल. (दिल्ली) के अध्यक्ष श्री एन.डी.पंचोली और रोहतक के वकील श्री राजेश शर्मा भी मौजूद थे। पंचोली साहब ने कहा कि अगर हमारे लोकतंत्र को सफल होना है तो हमें सामाजिक विषमताओं के विरोध में इकट्ठा होना होगा। कानून का शासन हमारे संविधान का आधार है और यह सवाल उठता है कि क्या हमारी पुलिस का व्यवहार संविधान के मुताबिक होता है? उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि क्यों 1981 से सिफ़ारिश किये गए पुलिस सुधार लागू नहीं किये जा रहे? पुलिस को निष्पक्षता से काम करना चाहिए लेकिन गैर-मुनासिब हस्तक्षेप के कारण यह नहीं हो पाता। पुलिस में सुधार तब ही हो सकता है जब नियुक्तियाँ सही ढंग से होंगी। आमिर के केस के सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि यह अपनी तरह का अकेला मामला नहीं है। अनेक बेकसूर बिना किसी अपराध के साबित हुए, जेल में सड़ रहे हैं। इन में गरीब, बेसहारा, आदिवासी और अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों की तादाद ज्यादा है। 
यह सवाल भी केंद्र में आया कि इस प्रकार के मामलों में सम्बद्ध अधिकारियों की जवाबदेही क्यों तय नहीं की जाती - और निर्दोष पाए गए व्यक्ति को अपना जीवन नए सिरे से शुरू करने के लिए सहायता क्यों नहीं दी जाती। झूठे केस लादने के लिये किसी की जिम्मेदारी तो तय होनी चाहिये।
रोहतक के वकील श्री राजेश शर्मा जो आमिर की रोहतक में कानूनी मदद कर रहे थे, भी बोले और उन्होंने कहा कि हमारे संविधान के मुताबिक हर इंसान तब तक बेकसूर है जब तक कि उस के विरुद्ध कोई जुर्म साबित न हो जाए। कोई भी व्यक्ति जिस पर केस चल रहा है, वित्तीय संसाधनों के अभाव में मुफ़्त कानूनी सलाह लेने का हकदार है। आमिर पर 2 केस रोहतक के थे जिन में उन्होंने उन की सहायता की। आमिर के विरुद्ध कोई सबूत नहीं था और वे बेकसूर साबित हुए। श्री राजेश शर्मा ने लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट की जानकारियाँ भी साझा कीं।
‘सप्तरंग’ के प्रधान प्रिंसिपल (सेवानिवृत्त) महावीर शर्मा ने कार्यक्रम के अंत में सब का धन्यवाद किया और आमिर को इस बात पर बधाई दी कि उन्होंने इतना कुछ झेलने के बाद भी अपने मानवीय मूल्यों को नहीं त्यागा। साथ ही श्री एन.डी.पंचोली और श्री राजेश शर्मा का भी आभार प्रकट किया और कहा कि हमें ये सोचना होगा कि कैसे यह सुनिश्चित हो कि जो आमिर के साथ बीती है वह किसी के साथ न बीते। समता और भाईचारे के मूल्यबोध और एक संवेदनशील समाज के बिना जनतंत्र बेमानी है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि आज इस आप-बीती को सुनने वाला हर व्यक्ति अपने स्तर पर और मिलजुल कर, दोनों तरीके से ऐसे प्रयास करेंगे कि हर किसी को न्याय मिले और किसी के साथ अन्याय न हो.
(सप्तरंग का प्रेस नोट)

कार्यक्रम संयोजक  प्रोफेसर राजेन्द्र चौधरी,                                                                               
 रमणीक मोहन, सचिव, ‘सप्तरंग'.

Saturday, September 6, 2014

शुभा की चार कविताएं


वरिष्ठ कवयित्री, लेखिका और एक्टिविस्ट शुभा का आज जन्मदिन है। इस मौके पर हम अपनी 60 साल की इस युवा साथी की चार कविताएं प्रकाशित कर रहे हैं।
1
एक लम्बी दूरी
एक अधूरा काम
एक भ्रूण
ये सभी जगाते हैं कल्पना
कल्पना से
दूरी कम नहीं होती
काम पूरा नहीं होता
फिर भी दिखती है मंज़िल

दिखाई पड़ती है हंसती हुई
एक बच्ची रास्ते पर
***

2
हवा आधी है
आग आधी है
पानी आधा है
दुनिया आधी है
आधा-आधा नहीं
बीच से टूटा है
यह संसार बीच से टूटा है।
***

3
एक और एक
दो नहीं होते
एक और एक ग्यारह भी नहीं होते
क्योंकि एक नहीं है
एक के टुकड़े हैं
जिनसे एक भी नहीं बनता
इसे टूटना कहते हैं।
***

4
प्यासा आदमी
पानी को याद करता है
वह उसे पीना चाहता है

फिर प्यास बढ़ती है
तो वह उसे देखना चाहता है

और प्यास बढ़ती है
तो वह उसकी आवाज़ सुनना चाहता है

और प्यास बढ़ती है
तो वह अपने और पानी के बीच की दूरी देखने लगता है

और प्यास बढ़ती है तो वह
इस दूरी को एक रास्ते की तरह देखता है

और दूरी बढ़ती है
तो वह रास्ते को प्यार करने लगता है

और प्यास बढ़ती है
तो हर क्षण पानी भी उसके साथ रहने लगता है

लोग न उसके पानी को देखते हैं न उसकी प्यास को

ऐसा आदमी कभी-कभी गूंगा हो जाता है।
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